कस्ता के निकटवर्ती ग्राम गाजीपुर में बाबा तुरंत नाथ मंदिर खो रहा अपना अस्तित्व।
गाजीपुर गांव में बाबा तुरंतनाथ की दिव्य शिवलिंग
लाखीमपुर खीरी। भारत में शिव मंदिरों की कोई कमी नहीं है। होगी भी कैसे यहां शिव भक्तों की तो यहां भरमार हैं भक्तो के प्यारे बम-बम भोले अर्थात भगवान शंकर के ही एक अद्भुत मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। बता दें जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं वो मंदिर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिल से लगभग 30 कि.मी दूर मितौली तहसील की ग्राम पंचायत अछरोला के मजरा गाजीपुर में स्थित है। जहां स्थापित शिवलिंग के बारे में ऐसी मान्यता है कि जानकर शायद आपको अपनी आंखों व कानों पर विश्वास नहीं होगा। कहा जाता है बाबा तुरंतनाथ नामक शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग धरती के अंदर पांच मीटर तक धंसा हुआ है। लोक मान्यता के आधार पर जब भी इस शिवलिंग को धरती से बाहर निकालने की कोशिश की गई तो उस दौरान शिवलिंग से दूध और खून आने लगा।
👉 आइए विस्तार में जानें इस मंदिर के बारे में।
धार्मिक स्थलों की तरह यहां भी भोलेनाथ से जो भी मनोकामना मांगी जाए वो शीघ्र ही पूरी होती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि बाबा तुरंतनाथ नामक ये प्राचीन शिव मंदिर एक सिद्ध मंदिर है। साल में दो बार कार्तिक पूर्णिमा व दशहरा का यहां मेले का भी आयोजन 1660 ईङ्ग पूर्व से चला आ रहा है तथा हर महीने में अमावस्या का मेला भी किसी जमाने में लगता था और तो और महाशिवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भी कभी लगती थीं।
👉 यहां की प्रचलित कथाओं के अनुसार।
इस शिव मंदिर का निर्माण लगभग 362 वर्ष पूर्व में हुआ था बताया जाता है की जहां पर मंदिर है वहीं स्थान पर कुएं की खुदाई हो रही थी तभी बाबा तुरंतनाथ की मूर्ति निकली जिसमें दूध व खून की धार चल रही थी जो आज भी शिवलिंग पर आपने अस्तित्व की पहचान दशार्ता है मूर्ति निकालने के बाद वही पर मंदिर की स्थापना कर दी गई और लोग बाबा तुरंत नाथ मंदिर गाजीपुर धाम बोलने लगे वहीं दूर-दराज से यहां बाबा तुरंतनाथ के दर्शन करने आने लगे लोगों की मानें तो मंदिर की स्थापना ग्राम बेहखा निवासी कुष्ठ रोगी ने यहां मन्नत मांगी थी की अगर मेरा कुष्ठ रोग ठीक हो जायेगा तो मैं यहां मंदिर बनवाऊंगा प्रीतम सिंह का कुष्ठ रोग जल्द ही ठीक हो गया और गाजीपुर में बाबा तुरंत नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार उन्होंने कराया तभी से मेले का आयोजन भी शुरू हो गया था।
👉 इस मंदिर में पूजे जातें है भगवान ब्रह्मा जी
👉 इस मंदिर में नव दुर्गा व ब्रह्मा जी की भी पूजा होती जो 1660 ईसा पूर्व में हिंगलाज से हरिचरण गिरी पैदल झोली में रख कर लाए थे और इनकी पूजा प्रत्येक दिन होती है।
👉 मंदिर के समीप बना है तालाब नुमा सरोवर
मंदिर के पास जो तालाब नुमा सरोवर बना हुआ है वो साधु गिरी जो चांदी के दिन में पांच रुपए अपनी सिद्धि से बनाने के लिए मशहूर थे उन्होंने इस तालाब (सरोवर) बनवाया था।
👉 यहां चार हैं जिंदा समाधि जिनका स्मृति चिन्ह आज भी बना हुआ है।
बाबा तुरंतनाथ मंदिर के सामने बनी तीन जिंदा समाधि |
साधु गिरी की समाधि मंदिर के सामने बनी है जिन्होंने चौथी जिंदा समाधि ली थी। |
1. मंशा गिरी जो तकरीबन
110 वर्ष की आयु में आपने पूरे जीवन में भावृति (राख) पीकर ही जीवित रहे और अन्त में जिंदा समाधि लेकर ब्रह्मलीन हो गए।
2. हरीचरन गिरी
जो अपनी 150 साल की आयु में पूरे जीवन में सिर्फ फल का सेवन कर जीवित रहे और अंत में जिंदा समाधि लेकर ब्रह्मलीन हो गए।
3. निमधारी बाबा
जो करीब 90 साल की आयु में आपने पूरे जीवन काल में सिर्फ नीम के पत्ते व उसका जूस पीकर जीवित रहे और अंत में जिंदा समाधि लेकर ब्रह्मलीन हो गए।
4. साधु गिरी
जो आपने पूरे जीवन काल में प्रत्येक दिन पांच सिक्के चांदी के अपनी सिद्धि से बना लेते थे जिससे वो अपना जीवन यापन करते थे और लगभग एक बीस वर्ष की लंबी आयु के बाद जिंदा समाधि लेकर ब्रह्मलीन हो गए।
कार्तिक मेले में टूटे पुल से गुजरते श्रद्धालु |
आज वर्तमान समय में गाजीपुर गांव जाने के लिए सरायन नदी पर पुल नही है जिससे मेला देखने आने वालो में काफी गिरावट दर साल हुई है यहां का मेला कभी मिट्टी के भोंपू यानी बाद्य यंत्र से मशहूर था।
लेखक:- प्रांशु वर्मा आर्कियोलॉजिस्ट, वन्य जीव संरक्षण
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